उत्तराखंड में लागू हुआ UCC कानून, आपके जीवन में क्या पड़ेगा असर जानिए शादी, तलाक, जमीन-जायदाद सहित बदल गए यह नियम

UCC in Uttarakhand – फैक्ट 24 न्यूज़: उत्तराखंड ने आज इतिहास रचते हुए समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू कर दी है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मुख्य सेवक सदन में यूसीसी के पोर्टल और नियमावली का लोकार्पण करते हुए इसकी अधिसूचना जारी की। इस कदम के साथ उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन गया है जिसने समान नागरिक संहिता को लागू किया है।

मुख्यमंत्री धामी ने इसे प्रदेश और देश के लिए ऐतिहासिक दिन बताया। उन्होंने कहा कि इस पहल का श्रेय देवभूमि उत्तराखंड की जनता को जाता है। उन्होंने इसे समाज के हर वर्ग के लिए एक सकारात्मक बदलाव का संकेत बताया। सीएम ने कहा कि यूसीसी लागू होने से सभी नागरिकों के अधिकार समान हो गए हैं और सभी धर्मों की महिलाओं के अधिकारों को भी बराबरी का दर्जा मिला है।

यह कदम उत्तराखंड में ढाई साल की गहन तैयारी और व्यापक विचार-विमर्श के बाद उठाया गया है। यूसीसी का उद्देश्य विभिन्न धर्मों के व्यक्तिगत कानूनों के स्थान पर एक समान कानून लागू करना है, जिससे सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार और कर्तव्य सुनिश्चित हो सकें। UCC पोर्टल पर CM धामी ने अपना पहला पंजीकरण करवाया है।

 

यूसीसी लागू हुआ अब आएंगे यह बदलाव –
सभी धर्म-समुदायों में विवाह, तलाक, गुजारा भत्ता और विरासत के लिए एक ही कानून।
26 मार्च 2010 के बाद से हर दंपती के लिए तलाक व शादी का पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा।
ग्राम पंचायत, नगर पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम, महानगर पालिका स्तर पर पंजीकरण की सुविधा।
पंजीकरण न कराने पर अधिकतम 25,000 रुपये का जुर्माना।

पंजीकरण नहीं कराने वाले सरकारी सुविधाओं के लाभ से भी वंचित रहेंगे।
विवाह के लिए लड़के की न्यूनतम आयु 21 और लड़की की 18 वर्ष होगी।
महिलाएं भी पुरुषों के समान कारणों और अधिकारों को तलाक का आधार बना सकती हैं।
हलाला और इद्दत जैसी प्रथा खत्म होगी। महिला का दोबारा विवाह करने की किसी भी तरह की शर्तों पर रोक होगी।
कोई बिना सहमति के धर्म परिवर्तन करता है तो दूसरे व्यक्ति को उस व्यक्ति से तलाक लेने व गुजारा भत्ता लेने का अधिकार होगा।
एक पति और पत्नी के जीवित होने पर दूसरा विवाह करना पूरी तरह से प्रतिबंधित होगा।
पति-पत्नी के तलाक या घरेलू झगड़े के समय पांच वर्ष तक के बच्चे की कस्टडी उसकी माता के पास रहेगी।
संपत्ति में बेटा और बेटी को बराबर अधिकार होंगे।
जायज और नाजायज बच्चों में कोई भेद नहीं होगा।
नाजायज बच्चों को भी उस दंपती की जैविक संतान माना जाएगा।

गोद लिए, सरगोसी से असिस्टेड री प्रोडेक्टिव टेक्नोलॉजी से जन्मे बच्चे जैविक संतान होंगे।
किसी महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे के संपत्ति में अधिकार संरक्षित रहेंगे।
कोई व्यक्ति किसी भी व्यक्ति को वसीयत से अपनी संपत्ति दे सकता है।
लिव इन में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए वेब पोर्टल पर पंजीकरण अनिवार्य होगा।
युगल पंजीकरण रसीद से ही किराया पर घर, हॉस्टल या पीजी ले सकेंगे।
लिव इन में पैदा होने वाले बच्चों को जायज संतान माना जाएगा और जैविक संतान के सभी अधिकार मिलेंगे।
लिव इन में रहने वालों के लिए संबंध विच्छेद का भी पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा।
अनिवार्य पंजीकरण न कराने पर छह माह के कारावास या 25 हजार जुर्माना या दोनों का प्रावधान होंगे।

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