
Pahalgam Terror Attack: एक नई नवेली दुल्हन, जिसके हाथ की मेहंदी का रंग भी नहीं छूटा था सुहाग आतंकियों ने लूट लिया. पहलगाम की हरी-भरी वादियों में, जहां प्यार और प्रकृति का मेल हर दिल को छू लेता है, एक ऐसी त्रासदी हुई, जिसने इंसानियत को शर्मसार कर दिया. एक नई नवेली दुल्हन, जिसके हाथों की मेहंदी अभी सूखी भी नहीं थी, अपने जीवनसाथी के साथ हनीमून के सपने संजोकर आई थी. लेकिन आतंकियों की क्रूर गोलियों ने उसके सारे अरमानों को पलभर में छीन लिया. ‘मेरे पति को छोड़ दो, मेरा सबकुछ ले लो’ उसकी चीखें पहलगाम की बैसरन घाटी में गूंजती रहीं, मगर आतंकियों का दिल नहीं पसीजा.
वह पल कितना भयावह रहा होगा, जब उस दुल्हन ने अपने पति को गोलियों से छलनी होते देखा. आतंकियों ने पहले धर्म पूछा, फिर बिना किसी दया के ताबड़तोड़ गोलियां चलाईं. एक हिंदू होने की सजा उस बेगुनाह पर्यटक को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी. वह दुल्हन चीखती रही, ‘कोई मेरे पति को बचा लो,’ लेकिन आतंक के साये में कोई उसकी मदद को आगे नहीं आ सका. यह सिर्फ एक व्यक्ति की हत्या नहीं थी; यह कश्मीरियत, इंसानियत और प्यार पर हमला था.
एक सुहागन पलभर में बन गई अभागन
पहलगाम, जो कभी शांति और सुकून का प्रतीक था, आज खून के धब्बों से सना है. यह वही जगह है, जहां पर्यटक प्रकृति की गोद में सुकून तलाशने आते हैं. लेकिन इस हमले ने उस खूबसूरती को दागदार कर दिया. उस नवविवाहिता का दर्द कौन समझ सकता है, जिसके सामने उसके जीवन का आधार छीन लिया गया? वह चूड़ा, जो उसके सुहाग का प्रतीक था, अब केवल एक दर्दनाक याद बनकर रह गया
